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tav prasad savaiye in hindi

 

Tav Prasad Savaiye in Hindi

त्वप्रसादि ॥ स्वये ॥






ੴ  


सतिगुर प्रसादि ॥


पातिसाही १० ॥


त्वप्रसादि ॥ स्वये ॥


स्रावग सुध समूह सिधान के देखि फिरिओ घर जोग जती के ॥

सूर सुरारदन सुध सुधादिक संत समूह अनेक मती के ॥

सारे ही देस को देखि रहिओ मत कोऊ न देखीअत प्रानपती के ॥

स्री भगवान की भाइ क्रिपा हूं ते एक रती बिनएक रती के ॥१॥


माते मतंग जरे जर संग अनूप उतंग सुरंग सवारे ॥

कोट तुरंग कुरंग से कूदत पौन के गउन को जात निवारे ॥

भारी भुजान के भूप भली बिध निआवत सीस न जात बिचारे ॥

एते भए  तो कहा भए भूपत अंत को नांगे ही पांइपधारे ॥२॥


जीत फिरै सभ देस दिसान को बाजत ढोल म्रिदंग नगारे ॥

गुंजत गूड़ गजान के सुंदर हिंसत ही हयराज हजारे ॥

भूत भविख भवान के भूपत कउनु गनै नही जात बिचारे ॥

स्री पत स्री भगवान भजे बिनु अंत कउ अंत के धाम सिधारे ॥३॥


तीरथ नान दइआ दम दान सु संजम नेम अनेक बिसेखै ॥

बेद पुरान कतेब कुरान जमीन जमान सबान के पेखै ॥

पउन अहार जती जत धार सबै सु बिचार हजारक देखै ॥

स्री भगवान भजे बिन भूपत एक रती बिन एक न लेखै ॥४॥


सुध सिपाहदुरंत दुबाह सु साजि सनाह दुरजान दलैंगे ॥

भारी गुमान भरे मन मै कर परबत पंख हले न हलैंगे ॥

तोर अरीन मरोर मवासन माते मतंगन मान मलैंगे ॥

स्री पत स्री भगवान क्रिपा बिनु  तिआगि जहानु निदान चलैंगे ॥५॥


बीर अपार बडे बरिआर अबिचारह सार कीधार भछया ॥

तोरत देस मलिंद मवासन माते गजान के मान मलया ॥

गाड़्हे गड़्हान के तोड़न हार सु बातन हीं चक चार लवया ॥

साहिब स्री सभ को सिरनाइक जाचक अनेक सु एक दिवया ॥६॥


दानव देव फनिंद निसाचर भूत भविख भवान जपैंगे ॥

जीव जिते जल मै थल मै पल ही पल मै सभ थाप थपैंगे ॥

पुंन प्रतापन बाढ जैत धुन पापन के बहु पुंज खपैंगे ॥

साध समूह प्रसंन फिरै जग सत्र सभै अवलोक चपैंगे ॥७॥


मानव इंद्र गजिंद्र नराधप जौन त्रिलोक को राज करैंगे ॥

कोट इसनान  गजादिक दान अनेक सुअमबर साज बरैंगे ॥

ब्रहम महेसर बिसन सचीपति अंत फसे जम फास परैंगे ॥

जे नर स्री पति के प्रस हैं पग ते नर फेर न देह धरैंगे ॥८॥


कहा भयो जो दोऊ लोचन मूंद कै बैठि रहिओ  बक धिआन लगाइओ ॥

न्हात फिरिओ लीए सात समुंद्रन लोक गयोपरलोक गवाइओ ॥

बास कीओ बिखिआन सो बैठ कै  ऐसे ही ऐसे  सु बैस बिताइओ ॥

साच कहों सुन लेहु सभै जिन प्रेम कीओ तिन ही प्रभ पाइओ ॥९॥


काहू लै पाहन पूज धरयो सिर काहू लै लिंग गरे लटकाइओ ॥

काहू लखिओ हर अवाची दिसा मह काहू पछाह को सीस निवाइओ ॥

कोऊ बुतान को पूजत है पस कोऊ म्रितान को पूजन धाइओ ॥

कूर क्रिआ उरझिओ सभ ही जग स्री भगवान को भेद न पाइओ ॥१०॥


कोऊ बुतान को पूजत है पस कोऊ म्रितान को पूजन धाइओ ॥

कूर क्रिआ उरझिओ सभ ही जग स्री भगवान को भेदु न पाइओ ॥१०॥


वाहेगुरु जी का खालसा ॥  वाहेगुरु जी की फतेह ॥


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त्वप्रसादि ॥ स्वये ॥ फास्ट

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