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रहरास साहिब - Rehras Sahib in Hindi


Rehras Sahib in Hindi







रहरास साहिब

सतनाम श्री वाहेगुरु जी ॥

हरि जुगु जुगु भगत उपाइआ पैज रखदा आइआ राम राजे ॥

हरणाखसु दुसटु हरि मारिआ प्रहलादु तराइआ ॥

अहंकारीआ निंदका पिठि देइ नामदेउ मुखि लाइआ ॥

जन नानक ऐसा हरि सेविआ अंति लए छड़ाइआ ॥४॥

ੴ 

सतिगुर प्रसादि ॥

सलोकु म १ ॥

दुखु दारू सुखु रोगु भइआ जा सुखु तामि न होई ॥

तूं करता करणा मै नाही जा हउ करी न होई ॥१॥

बलिहारी कुदरति वसिआ ॥ तेरा अंतु न जाई लखिआ ॥१॥ रहाउ ॥

जाति महि जोति जोति महि जाता अकल कला भरपूरि रहिआ ॥

तूं सचा साहिबु सिफति सुआलिੑउ जिनि कीती सो पारि पइआ ॥

कहु नानक करते कीआ बाता जो किछु करणा सु करि रहिआ ॥२॥


सो दरु रागु आसा महला १ ॥

ੴ 

सतिगुर प्रसादि ॥

सो दरु तेरा केहा सो घरु केहा जितु बहि सरब समाले ॥

वाजे तेरे नाद अनेक असंखा केते तेरे वावणहारे ॥

केते तेरे राग परी सिउ कहीअहि केते तेरे गावणहारे ॥

गावनि तुधनो पवणु पाणी बैसंतरु गावै राजा धरमु दुआरे ॥

गावनि तुधनो चितु गुपतु लिखि जाणनि लिखि लिखि धरमु बीचारे ॥

गावनि तुधनो ईसरु ब्रहमा देवी सोहनि तेरे सदा सवारे ॥

गावनि तुधनो इंद्र इंद्रासणि बैठे देवतिआ दरि नाले ॥

गावनि तुधनो सिध समाधी अंदरि गावनि तुधनो साध बीचारे ॥

गावनि तुधनो जती सती संतोखी गावनि तुधनो वीर करारे ॥

गावनि तुधनो पंडित पड़नि रखीसुर जुगु जुगु वेदा नाले ॥

गावनि तुधनो मोहणीआ मनु मोहनि सुरगु मछु पइआले ॥

गावनि तुधनो रतन उपाए तेरे अठसठि तीरथ नाले ॥

गावनि तुधनो जोध महाबल सूरा गावनि तुधनो खाणी चारे ॥

गावनि तुधनो खंड मंडल ब्रहमंडा करि करि रखे तेरे धारे ॥

सेई तुधनो गावनि जो तुधु भावनि रते तेरे भगत रसाले ॥

होरि केते तुधनो गावनि से मै चिति न आवनि नानकु किआ बीचारे ॥

सोई सोई सदा सचु साहिबु साचा  साची नाई ॥

है भी होसी जाइ न जासी रचना जिनि रचाई ॥

रंगी रंगी भाती करि करि जिनसी माइआ जिनि उपाई ॥

करि करि देखै कीता आपणा जिउ तिस दी वडिआई ॥

जो तिसु भावै सोई करसी फिरि हुकमु न करणा जाई ॥

सो पातिसाहु साहा पतिसाहिबु नानक रहणु रजाई ॥१॥


आसा महला १ ॥

सुणि वडा आखै सभु कोइ ॥ केवडु वडा डीठा होइ ॥

कीमति पाइ न कहिआ जाइ ॥ कहणै वाले तेरे रहे समाइ ॥१॥

वडे मेरे साहिबा गहिर ग्मभीरा गुणी गहीरा ॥

कोइ न जाणै तेरा केताकेवडु चीरा ॥१॥ रहाउ ॥

सभि सुरती मिलि सुरति कमाई ॥ सभ कीमति मिलि कीमति पाई ॥

गिआनी धिआनी गुर गुरहाई ॥ कहणु न जाई तेरी तिलु वडिआई ॥२॥

सभि सत सभि तप सभि चंगिआईआ ॥ सिधा पुरखा कीआ वडिआईआ ॥

तुधु विणु सिधी किनै न पाईआ ॥ करमि मिलै नाही ठाकि रहाईआ ॥३॥

आखण वाला किआ वेचारा ॥ सिफती भरे तेरे भंडारा ॥

जिसु तू देहि तिसै किआ चारा ॥ नानक सचु सवारणहारा ॥


आसा महला १ ॥

आखा जीवा विसरै मरि जाउ ॥ आखणि अउखा साचा नाउ ॥

साचे नाम की लागै भूख ॥ उतु भूखै खाइ चलीअहि दूख ॥१॥

सो किउ विसरै मेरी माइ ॥ साचा साहिबु साचै नाइ ॥१॥ रहाउ ॥

साचे नाम की तिलु वडिआई ॥ आखि थके कीमति नही पाई ॥

जे सभि मिलि कै आखण पाहि ॥ वडा न होवै घाटि न जाइ ॥२॥

ना ओहु मरै न होवै सोगु ॥ देदा रहै न चूकै भोगु ॥

गुणु एहो होरु नाही कोइ ॥ ना को होआ ना को होइ ॥३॥

जेवडु आपि तेवड तेरी दाति ॥ जिनि दिनु करि कै कीती राति ॥

खसमु विसारहि ते कमजाति ॥ नानक नावै बाझु सनाति ॥


रागु गूजरी महला ४ ॥

हरि के जन सतिगुर सत पुरखा बिनउ करउ गुर पासि ॥

हम कीरे किरम सतिगुर सरणाई करि दइआ नामु परगासि ॥१॥

मेरे मीत गुरदेव मो कउ राम नामु परगासि ॥

गुरमति नामु मेरा प्रान सखाई हरि कीरति हमरी रहरासि ॥१॥ रहाउ ॥

हरि जन के वड भाग वडेरे जिन हरि हरि सरधा हरि पिआस ॥

हरि हरि नामु मिलै त्रिपतासहि मिलि संगति गुण परगासि ॥२॥

जिन हरि हरि  हरि रसु नामु न पाइआ ते भागहीण जम पासि ॥

जो सतिगुर सरणि संगति नही आए ध्रिगु जीवे ध्रिगु जीवासि ॥३॥

जिन हरि जन सतिगुर संगति पाई तिन धुरि मसतकि लिखिआ लिखासि ॥

धनु धंनु  सतसंगति जितु हरि रसु पाइआ मिलि जन नानक नामु परगासि ॥ 


रागु गूजरी महला ५ ॥

काहे रे मन चितवहि उदमु जा आहरि हरि जीउ परिआ ॥

सैल पथर महि जंत उपाए ता का रिजकु आगै करि धरिआ ॥१॥

मेरे माधउ जी सतसंगति मिले सु तरिआ ॥

गुर परसादि परम पदु पाइआ सूके कासट हरिआ ॥१॥ रहाउ ॥

जननि पिता लोक सुत बनिता कोइ न किस की धरिआ ॥

सिरि सिरि रिजकु  संबाहे ठाकुरु काहे मन भउ करिआ ॥२॥

ऊडे ऊडि आवै सै कोसा तिसु पाछै  बचरे छरिआ ॥

तिन कवणु खलावै कवणु चुगावै मन महि सिमरनु करिआ ॥३॥

सभि निधान दस असट सिधान ठाकुर कर तल धरिआ ॥

जन नानक बलि बलि सद बलि जाईऐ तेरा अंतु न पारावरिआ ॥


सोदरु रागु आसा महला  ॥

ੴ 

सतिगुर प्रसादि ॥

सो पुरखु निरंजनु हरि पुरखु निरंजनु हरि अगमा अगम अपारा ॥

सभि धिआवहि सभि धिआवहि तुधु जी हरि सचे सिरजणहारा ॥

सभि जीअ तुमारे जी तूं जीआ का दातारा ॥

हरि धिआवहु संतहु जी सभि दूख विसारणहारा ॥

हरि आपे ठाकुरु हरि आपे सेवकु जी किआ नानक जंत विचारा ॥१॥

तूं घट घट अंतरि सरब निरंतरि जी हरि एको पुरखु समाणा ॥

इकि दाते इकि भेखारी जी सभि तेरे चोज विडाणा ॥

तूं आपे दाता आपे भुगता जी हउ तुधु बिनु अवरु न जाणा ॥

तूं पारब्रहमु बेअंतु बेअंतु जी तेरे किआ गुण आखि वखाणा ॥

जो सेवहि जो सेवहि तुधु जी जनु नानकु तिन कुरबाणा ॥२॥

हरि धिआवहि हरि धिआवहि तुधु जी से जन जुग महि सुखवासी ॥

से मुकतु से मुकतु भए जिन हरि धिआइआ जी तिन तूटी जम की फासी ॥

जिन निरभउ जिन हरि निरभउ धिआइआ जी तिन का भउ सभु गवासी ॥ 

जिन सेविआ जिन सेविआ मेरा हरि जी ते हरि हरि रूपि समासी ॥

से धंनु  से धंनु जिन हरि धिआइआ जी जनु नानकु तिन बलि जासी ॥३॥

तेरी भगति तेरी भगति भंडार जी भरे बिअंत बेअंता ॥

तेरे भगत तेरे भगत सलाहनि तुधु जी हरि अनिक अनेक अनंता ॥

तेरी अनिकतेरी अनिक करहि हरि पूजा जी तपु तापहि जपहि बेअंता ॥

तेरे अनेक  तेरे अनेक पड़हि बहु सिम्रिति सासत जीकरि किरिआ खटु करम करंता ॥

से भगतसे भगत भले जन नानक जी जो भावहि मेरे हरि भगवंता ॥४॥

तूं आदि पुरखु अपर्मपरु करता जी तुधु जेवडु अवरु न कोई ॥

तूं जुगु जुगु एको सदा सदा तूं एको जी तूं निहचलु करता सोई ॥

तुधु आपे भावै सोई वरतै जी तूं आपे करहि सु होई ॥

तुधु आपे स्रिसटि सभ उपाई जी तुधु आपे सिरजि सभ गोई ॥

जनु नानकु गुण गावै करते के जी जो सभसै का जाणोई ॥५॥


आसा महला ४॥

तूं करता सचिआरु मैडा सांई ॥

जो तउ भावै सोई थीसी जो तूं देहिसोई हउ पाई ॥१॥ रहाउ ॥

सभ तेरी तूं सभनी धिआइआ ॥ जिसनो क्रिपा करहि तिनि नाम रतनु पाइआ ॥

गुरमुखि लाधा मनमुखि गवाइआ ॥ तुधु आपि विछोड़िआ आपि मिलाइआ ॥१॥

तूं दरीआउ सभ तुझ ही माहि ॥ तुझ बिनु दूजा कोई नाहि ॥

जीअ जंत सभि तेरा खेलु ॥ विजोगि मिलि विछुड़िआ संजोगी मेलु ॥२॥

जिसनो तूं जाणाइहि सोई जनु जाणै ॥ हरि गुण सद ही आखि वखाणै ॥

जिनि हरि सेविआ तिनि सुखु पाइआ ॥ सहजे ही हरि नामि समाइआ ॥३॥

तूं आपे करता तेरा कीआ सभु होइ ॥ तुधु बिनु दूजा अवरु न कोइ ॥

तू करि करि वेखहि  जाणहि सोइ ॥ जन नानक गुरमुखि परगटु होइ ॥


आसा महला १॥

तितु सरवरड़ै भईले निवासा पाणी पावकु तिनहि कीआ ॥

पंक जु मोह पगु नही चालै हम देखा तह डूबीअले ॥१॥

मन एकु न चेतसि मूड़ मना ॥ हरि बिसरत तेरे गुण गलिआ ॥१॥ रहाउ ॥

ना हउ जती सती नही पड़िआ मूरख मुगधा जनमु भइआ ॥

प्रणवति नानक तिन की सरणा जिन तूं नाही वीसरिआ ॥


आसा महला ५ ॥

भई परापति मानुख देहुरीआ ॥ गोबिंद मिलण की इह तेरी बरीआ ॥

अवरि काज तेरै कितै न काम ॥ मिलु साधसंगति भजु केवल नाम ॥

सरंजामि लागु भवजल तरन कै ॥ जनमु ब्रिथा जात रंगि माइआ कै ॥ रहाउ ॥

जपु तपु संजमु धरमु न कमाइआ ॥ सेवा साध न जानिआ हरि राइआ ॥

कहु नानक हम नीच करंमा ॥ सरणि परे की राखहु सरमा ॥

जपु तपु संजमु धरमु न कमाइआ ॥ सेवा साध न जानिआ हरि राइआ ॥

कहु नानक हम नीच करंमा ॥ सरणि परे की राखहु सरमा ॥


स्री वाहगुरू जी की फतह ॥

पातिसाही १० ॥ चौपई ॥

पुनि राछस का काटा सीसा ॥ स्री असिकेतु जगत के ईसा ॥ 

पुहपन ब्रिसटि गगन तें भई ॥ सभ हिन आनि बधाई दई ॥१॥ 

धंन  धंन  लोगन के राजा ॥ दुसटन दाह गरीब निवाजा ॥ 

अखल भवन के सिरजनहारे ॥ दास जानि मुहि  लेहु उबारे ॥२॥


कबयो बाच बेनती ॥ चौपई ॥

हमरी करो हाथ दै रछा ॥ पूरन होइ चित की इछा ॥

तव चरनन मन रहै हमारा ॥ अपना जान करो प्रतिपारा ॥१॥

हमरे दुसट सभै तुम घावहु ॥ आपु हाथ दै मोहि बचावहु ॥

सुखी बसै मोरो परिवारा ॥ सेवक सिख सभै करतारा ॥२॥

मो रछा निजु कर दै करियै ॥ सभ बैरिन कौ आज संघरियै ॥

पूरन होइ हमारी आसा ॥ तोर भजन की रहै पिआसा ॥३॥

तुमहि छाडि कोई अवर न धियाऊं ॥ जो बर चाहों सु तुम ते पाऊं ॥

सेवक सिख हमारे तारीअहि ॥ चुनि चुनि सत्र हमारे मारीअहि ॥४॥

आप हाथ दै मुझै उबरियै ॥ मरन काल का त्रास निवरियै ॥

हूजो सदा हमारे पछा ॥ स्री असिधुज जू करियहु रछा ॥५॥

राखि लेहु मुहि राखनहारे ॥ साहिब संत सहाइ पियारे ॥

दीन बंधु दुसटन के हंता ॥ तुम हो पुरी चतुर दस कंता ॥६॥

काल पाइ ब्रहमा बपु धरा ॥ काल पाइ सिवजू अवतरा ॥

काल पाइ करि बिसन प्रकासा ॥ सकल काल का कीआ तमासा ॥७॥

जवन काल जोगी सिव कीओ ॥ बेद राज ब्रहमा जू थीओ ॥

जवन काल सभ लोक सवारा ॥ नमसकार है ताहि हमारा ॥८॥

जवन काल सभ जगत बनायो ॥ देव दैत जछन उपजायो ॥

आदि अंति एकै अवतारा ॥ सोई गुरू समझियहु हमारा ॥९॥

नमसकार तिस ही को हमारी ॥ सकल प्रजा जिन आप सवारी ॥

सिवकन को सिवगुन सुख दीयो ॥ सत्रुन को पल मो बध कीयो ॥१०॥

घट घट के अंतर की जानत ॥ भले बुरे की पीर पछानत ॥

चीटी ते कुंचर असथूला ॥ सभ पर क्रिपा द्रिसटि करि फूला ॥११॥

संतन दुख पाए ते दुखी ॥ सुख पाए साधन के सुखी ॥

एक एक की पीर पछानैं ॥ घट घट के पट पट की जानैं ॥१२॥

जब उदकरख करा करतारा ॥ प्रजा धरत तब देह अपारा ॥

जब आकरख करत हो कबहूं ॥ तुम मै मिलत देह धर सभहूं ॥१३॥

जेते बदन स्रिसटि सभ धारै ॥ आपु आपनी बूझ उचारै ॥

तुम सभही ते रहत निरालम ॥ जानत बेद भेद अर आलम ॥१४॥

निरंकार न्रिबिकार न्रिलंभ ॥ आदि अनील अनादि असंभ ॥

ता का मूड़्ह उचारत भेदा ॥ जा को भेव न पावत बेदा ॥१५॥

ता कौ करि पाहन अनुमानत ॥ महां मूड़्ह कछु भेद न जानत ॥

महादेव कौ कहत सदा सिव ॥ निरंकार का चीनत नहि भिव ॥१६॥

आपु आपुनी बुधि है जेती ॥ बरनत भिंन भिंन तुहि तेती ॥

तुमरा लखा न जाइ पसारा ॥ किह बिधि सजा प्रथम संसारा ॥१७॥

एकै रूप अनूप सरूपा ॥ रंक भयो राव कही भूपा ॥

अंडज जेरज सेतज कीनी ॥ उतभुज खानि बहुर रचि दीनी ॥१८॥

कहूं फूलि राजा ह्वै बैठा ॥ कहूं सिमटि भयो संकर इकैठा ॥

सिगरी स्रिसटि दिखाइ अचंभव ॥ आदि जुगादि सरूप सुयंभव ॥१९॥

अब रछा मेरी तुम करो ॥ सिख उबारि असिख संघरो ॥

दुसट जिते उठवत उतपाता ॥ सकल मलेछ करो रण घाता ॥२०॥

जे असिधुज तव सरनी परे ॥ तिन के दुसट दुखित ह्वै मरे ॥

पुरख जवन पग परे तिहारे ॥ तिन के तुम संकट सभ टारे ॥२१॥

जो कलि कौ इक बार धिऐ है ॥ ता के काल निकटि नहि ऐहै ॥

रछा होइ ताहि सभ काला ॥ दुसट अरिसट टरें ततकाला ॥२२॥

क्रिपा द्रिसटि तन जाहि निहरिहो ॥ ता के ताप तनक महि हरिहो ॥

रिधि सिधि घर मो सभ होई ॥ दुसट छाह छ्वै सकै न कोई ॥२३॥

एक बार जिन तुमै संभारा ॥ काल फास ते ताहि उबारा ॥

जिन नर नाम तिहारो कहा ॥ दारिद दुसट दोख ते रहा ॥२४॥

खड़ग केत  मैं सरणि तिहारी ॥ आप हाथ दै लेहु उबारी ॥

सरब ठौर मो होहु सहाई ॥ दुसट दोख ते लेहु बचाई ॥२५॥

क्रिपा करी हम पर जगमाता ॥ ग्रंथ करा पूरन सुभ राता ॥

किलबिख सकल देह को हरता ॥ दुशट दोखियन को छै करता ॥२६॥

स्री असिधुज जब भए दयाला ॥ पूरन करा ग्रंथ ततकाला ॥

मन बांछत फल पावै सोई ॥ दूख न तिसै बिआपत कोई ॥२७॥

अड़ि्ल ॥

सुनै गुंग  जो याहि सु रसना पावई ॥ सुनै मूड़्ह  चित लाइ चतुरता आवई ॥

दूख दरद भौ निकट न  तिन नर के रहै ॥ हो जो याकी एक बार  चौपई को कहै ॥


चौपई ॥

स्मबत स्त्रहसहस भणि्जै ॥ अरध सहस फुनि तीनि कहि्जै ॥

भाद्रव सुदी अशटमी रवि वारा ॥ तीर सतु्द्रव ग्रंथ सुधारा ॥

इति स्री चरित्रो पख्याने ॥ त्रिया चरित्रे मंत्री भूप सम्बादे ॥ 

चार सौ पांच चरित्र समापत मसतु सुभ मसतु ॥१॥ अफजूं ॥ 


दोहरा ॥ 

दास जान करि दास परि कीजै क्रिपा अपार ॥

आप हाथ दै राखु मुहि मन क्रम बचन बिचार ॥१॥ 


चौपई ॥ 

मै न गनेसहि प्रिथम मनाऊं ॥ किसन बिसन कबहूं नहि धिआऊं ॥ 

कान सुने पहिचान न तिन सो ॥ लिव लागी मोरी पग इन सो ॥२॥ 

महा काल रखवारि हमारो ॥ महां लोह मै किंकर थारो ॥ 

अपना जान करो रखवार ॥ बांह गहे की लाज बिचार ॥३॥ 

अपना जान मुझै प्रतिपरीऐ ॥ चुन चुन सत्र हमारे मरीऐ ॥ 

देग  तेग जग मै  दोऊ चलै ॥ राख आप मुहिअउर न  दलै ॥४॥ 

तुम  मम करहु सदा प्रतिपारा ॥ तुम साहब मै दास तिहारा ॥ 

जान आपना मुझै निवाज ॥ आप करो हमरे सभ काज ॥५॥ 

तुम हो  सभ राजन के राजा ॥ आपे आपु गरीब निवाजा ॥ 

दास जान कर क्रिपा करहु  मुहि ॥ हार  परा मै आनि  दुआर तुहि ॥६॥ 

अपना जान करो प्रतिपारा ॥ तुम साहिबु मैं किंकरु थारा ॥

दास जान दै  हाथ उबारो ॥ हमरे सभ बैरीअन  संघारो ॥७॥ 

प्रिथम धरों भग वत को  ध्याना ॥ बहुर करों कबिता बिधि नाना ॥ 

क्रिसन जथा मति चरित्र उचारो ॥ चूक होइ कबि  लेहु सुधारो ॥८॥ 


कबिउ बाच ॥ दोहरा ॥

जो  निज प्रभ मो सो कहा सो कह हौं जग माहि ॥

जो  तिह प्रभ को धिआइ हैं अंत सुरग को जाहिं ॥१॥


दोहरा ॥

हरि हरिजनि दुई एक है बिब  बिचार कछु नाहि ॥

जल ते उपज तरंग जिउ जल ही बिखै समाहि ॥२॥


दोहरा ॥

जब आइसु प्रभ को भयो जनमु धरा जग आइ ॥

अब मै  कथा संछेप ते सभहूं कहत सुनाइ ॥१॥


कबि बाच ॥दोहरा ॥

ठाढ भयो मै जोरि करि बचन कहा सिर निआइ ॥

पंथ चलै तब जगत मै जब तुम  करहु सहाइ ॥१॥ 


दोहरा ॥ 

जे जे तुमरे ध्यान को नित उठि धिऐ हैं संत ॥

अंत लहैंगे मुकत  फलु पावहिगे भगवंत ॥१॥ 


दोहरा ॥ 

काल पुरख की देहि मो कोटिक बिसन महेस ॥

कोटि इन्द्र ब्रहमा किते रवि ससि क्रोर जलेस ॥१॥ 


दोहरा ॥ 

राम कथा जुग जुग अटल सभ कोई भाखत नेत ॥

सुरग बास रघुबर करा सगरी पुरी समेत ॥१॥


चौपई ॥

जो इह कथा सुनै अरु गावै ॥ दूख पाप तिह निकट न आवै ॥ 

बिसन भगत की ए फल होई ॥ आधि बयाधि छ्वै सकै न कोई ॥१॥ 

संमत स्त्रहसहस पचावन ॥ हाड़ वदी प्रिथम सुख दावन ॥ 

त्वप्रसादि करि ग्रंथ सुधारा ॥ भूल परीलहु लेहु सुधारा ॥२॥ 


दोहरा ॥

नेत्र तुंग के चरन तर सतु्द्रव तीर तरंग ॥

स्री भगवत पूरन कीयो रघुबर कथा प्रसंग ॥३॥


दोहरा ॥

साध असाध जानो नही बाद सुबाद बिबादि ॥

ग्रंथ  सकल पूरण  कीयो भगवत क्रिपा प्रसादि ॥४॥ 


स्वैया ॥

पांइ गहे जब ते तुमरे तब ते कोऊ आंख तरे नहीं आन्यो ॥

राम रहीमपुरान कुरान अनेक कहैं मत एक न मानयो ॥

सिम्रित सासत्रबेद सभै बहु भेद कहैं हम एक न जान्यो ॥

स्री असिपान क्रिपा तुमरी करि मै न कहयोसभ तोहि बखान्यो ॥


दोहरा ॥

सगल दुआर कउ छाडि कै गहिओ तुहारो दुआर ॥ बांहि गहे की लाज अस गोबिंद दास तुहार ॥

सगल दुआर कउ छाडि कै गहिओ तुहारो दुआर ॥ बांहि गहे की लाज अस गोबिंद दास तुहार ॥


रामकली महला ३ अनंदु ॥

ੴ  

सतिगुर प्रसादि ॥

अनंदु भइआ मेरी माए सतिगुरू मै पाइआ ॥

सतिगुरु त पाइआ सहज सेती मनि वजीआ वाधाईआ ॥

राग रतन परवार परीआ सबद गावण आईआ ॥

सबदो त गावहु हरी केरा मनि जिनी वसाइआ ॥

कहै नानकु अनंदु होआ सतिगुरू मै पाइआ ॥१॥

ए मन मेरिआ तू सदा रहु हरि नाले ॥

हरि नालि रहु तू मंन मेरे दूख सभि विसारणा ॥

अंगीकारु ओहु करे तेरा कारज सभि सवारणा ॥

सभना गला समरथु सुआमी सो किउ मनहु विसारे ॥

कहै नानकु मंन मेरे सदा रहु हरि नाले ॥२॥

साचे साहिबा किआ नाही घरि तेरै ॥

घरि त तेरै सभु किछु है जिसु देहि सु पावए ॥

सदा सिफति सलाह तेरी नामु मनि वसावए ॥

नामु जिन कै मनि वसिआ वाजे सबद घनेरे ॥

कहै नानकु सचे साहिब किआ नाही घरि तेरै ॥३॥

साचा नामु मेरा आधारो ॥

साचु नामु अधारु मेरा जिनि भुखा सभि गवाईआ ॥

करि सांति सुख मनि आइ वसिआ जिनि इछा सभि पुजाईआ ॥

सदा कुरबाणु कीता गुरू विटहु जिस दीआ एहि वडिआईआ ॥

कहै नानकु सुणहु संतहु सबदि धरहु पिआरो ॥

साचा नामु मेरा आधारो ॥४॥

वाजे पंच सबद तितु घरि सभागै ॥

घरि सभागै सबद वाजे कला जितु घरि धारीआ ॥

पंच दूत तुधु वसि कीते कालु कंटकु मारिआ ॥

धुरि करमि पाइआ तुधु जिन कउ सि नामि हरि कै लागे ॥

कहै नानकु तह सुखु होआ तितु घरि अनहद वाजे ॥५॥

अनदु सुणहु वडभागीहो सगल मनोरथ पूरे ॥

पारब्रहमु प्रभु पाइआ उतरे सगल विसूरे ॥

दूख रोग संताप उतरे सुणी सची बाणी ॥

संत साजन भए सरसे पूरे गुर ते जाणी ॥

सुणते पुनीत कहते पवितु सतिगुरु रहिआ भरपूरे ॥

बिनवंति नानकु गुर चरण लागे वाजे अनहद तूरे ॥

सुणते पुनीत कहते पवितु सतिगुरु रहिआ भरपूरे ॥

बिनवंति नानकु गुर चरण लागे वाजे अनहद तूरे ॥


मुंदावणी महला ५ ॥

थाल विचि तिंनि वसतू पईओ सतु संतोखु वीचारो ॥

अम्रित नामु ठाकुर का पइओ जिस का सभसु अधारो ॥

जे को खावै जे को भुंचै तिस का होइ उधारो ॥

एह वसतु तजी नह जाई नित नित रखु उरि धारो ॥

तम संसारु चरन लगि तरीऐ सभु नानक ब्रहम पसारो ॥१॥


सलोक महला ५ ॥

तेरा कीता जातो नाही मैनो जोगु कीतोई ॥

मै निरगुणिआरे को गुणु नाही आपे तरसु पइओई ॥

तरसु पइआ मिहरामति होई सतिगुरु सजणु मिलिआ ॥

नानक नामु मिलै तां जीवां तनु मनु थीवै हरिआ ॥१॥


पउड़ी ॥

तिथै तू समरथु जिथै कोइ नाहि ॥ ओथै तेरी रख अगनी उदर माहि ॥

सुणि कै  जम के दूत नाइ तेरै छडि जाहि ॥ भउजलु बिखमु असगाहु गुर सबदी  पारि पाहि ॥

जिन कउ लगी पिआस अम्रितु सेइ खाहि ॥ कलि महि एहो पुंनु गुण गोविंद गाहि ॥

सभसै नो किरपालु सम्हाले साहि साहि ॥ बिरथा कोइ न जाइ जि आवै तुधु आहि ॥९॥


सलोकु म: ५ ॥

अंतरि गुरु आराधणा जिहवा जपि गुर नाउ ॥ नेत्री सतिगुरु पेखणा स्रवणी सुनणा गुर नाउ ॥

सतिगुर सेती रतिआ दरगह पाईऐ ठाउ ॥ कहु नानक किरपा करे जिसनो एह वथु देइ ॥

जग महि उतम काढीअहि विरले केई केइ ॥१॥


म: ५ ॥

रखे रखणहारि आपि उबारिअनु ॥

गुर की पैरी पाइ काज सवारिअनु ॥

होआ आपि दइआलु मनहु न विसारिअनु ॥

साध जना कै संगि भवजलु तारिअनु ॥

साकत निंदक दुसट खिन माहि बिदारिअनु ॥

तिसु साहिब की टेक नानक मनै माहि ॥

जिसु सिमरत सुखु होइ सगले दूख जाहि ॥

तिसु साहिब की टेक नानक मनै माहि ॥

जिसु सिमरत सुखु होइ सगले दूख जाहि ॥२॥

वाहेगुरु जी का खालसा ॥ वाहेगुरु जी की फ़तेह ॥


Rehras Sahib path full



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  सतिगुरु होइ दइआलु -  Satguru Hoye Dayal Satguru Hoye Dayal Shabad lyrics पउड़ी ॥ सतिगुरु होइ दइआलु त सरधा पूरीऐ ॥ सतिगुरु होइ दइआलु न कबहूं झूरीऐ ॥ सतिगुरु होइ दइआलु ता दुखु न जाणीऐ ॥ सतिगुरु होइ दइआलु ता हरि रंगु माणीऐ ॥ सतिगुरु होइ दइआलु ता जम का डरु केहा ॥ सतिगुरु होइ दइआलु ता सद ही सुखु देहा ॥ सतिगुरु होइ दइआलु ता नव निधि पाईऐ ॥ सतिगुरु होइ दइआलु त सचि समाईऐ ॥२५॥ Satguru Hoye Dayal 11 times continues jaap. सतिगुरु होइ दइआलु त सरधा पूरीऐ 11 बार जाप॥ Satguru Hoye Dayal Shabad is a gift of Guru Amar Das JI. It is also present in Guru Garanth Sahib on Ang 149. This Shabad is from Amrit kirtan gutka in Raag Maajh on page 211 in the section of Satgur Guni Nidhaan heh. सतिगुरु होइ दयालु त सरधा पूरीऐ शबद है गुरू अमर दास जी की  दात ॥  यह  शबद गुरू ग्रंथ साहब अंग १४੯  पर  है ॥ यह  शबद है राग माझ अमृत कीरतन गुटका में  पन्ना २११ पर  "सतिगुर गुनी निधानु है" ॥  Satguru Hoye Dayal lyrics with meaning. सतिगुरु होइ दयालु  अर्थ पउड़ी ॥ सतिगुरु होइ दइआलु त सरधा पूरीऐ ॥ सरधा = सिधक, भरोसा। द

आनंद साहिब - Anand Sahib in Hindi

 अनंदु साहिब रामकली महला ३ अनंदु ੴ  सतिगुर प्रसादि ॥ अनंदु भइआ मेरी माए सतिगुरू मै पाइआ ॥ सतिगुरु त पाइआ सहज सेती मनि वजीआ वाधाईआ ॥ राग रतन परवार परीआ सबद गावण आईआ ॥ सबदो त गावहु हरी केरा मनि जिनी वसाइआ ॥ कहै नानकु अनंदु होआ सतिगुरू मै पाइआ ॥१॥ ए मन मेरिआ तू सदा रहु हरि नाले ॥ हरि नालि रहु तू मंन मेरे दूख सभि विसारणा ॥ अंगीकारु ओहु करे तेरा कारज सभि सवारणा ॥ सभना गला समरथु सुआमी सो किउ मनहु विसारे ॥ कहै नानकु मंन मेरे सदा रहु हरि नाले ॥२॥ साचे साहिबा किआ नाही घरि तेरै ॥ घरि त तेरै सभु किछु है जिसु देहि सु पावए ॥ सदा सिफति सलाह तेरी नामु मनि वसावए ॥ नामु जिन कै मनि वसिआ वाजे सबद घनेरे ॥ कहै नानकु सचे साहिब किआ नाही घरि तेरै ॥३॥ साचा नामु मेरा आधारो ॥ साचु नामु अधारु मेरा जिनि भुखा सभि गवाईआ ॥ करि सांति सुख मनि आइ वसिआ जिनि इछा सभि पुजाईआ ॥ सदा कुरबाणु कीता गुरू विटहु जिस दीआ एहि वडिआईआ ॥ कहै नानकु सुणहु संतहु सबदि धरहु पिआरो ॥ साचा नामु मेरा आधारो ॥४॥ वाजे पंच सबद तितु घरि सभागै ॥ घरि सभागै सबद वाजे कला जितु घरि धारीआ ॥ पंच दूत तुधु वसि कीते कालु कंटकु मारिआ ॥ धुरि करमि पाइआ तुधु जिन कउ