Rehras Sahib in Hindi
रहरास साहिब
सतनाम श्री वाहेगुरु जी ॥
हरि जुगु जुगु भगत उपाइआ पैज रखदा आइआ राम राजे ॥
हरणाखसु दुसटु हरि मारिआ प्रहलादु तराइआ ॥
अहंकारीआ निंदका पिठि देइ नामदेउ मुखि लाइआ ॥
जन नानक ऐसा हरि सेविआ अंति लए छड़ाइआ ॥४॥
ੴ
सतिगुर प्रसादि ॥
सलोकु म १ ॥
दुखु दारू सुखु रोगु भइआ जा सुखु तामि न होई ॥
तूं करता करणा मै नाही जा हउ करी न होई ॥१॥
बलिहारी कुदरति वसिआ ॥ तेरा अंतु न जाई लखिआ ॥१॥ रहाउ ॥
जाति महि जोति जोति महि जाता अकल कला भरपूरि रहिआ ॥
तूं सचा साहिबु सिफति सुआलिੑउ जिनि कीती सो पारि पइआ ॥
कहु नानक करते कीआ बाता जो किछु करणा सु करि रहिआ ॥२॥
सो दरु रागु आसा महला १ ॥
ੴ
सतिगुर प्रसादि ॥
सो दरु तेरा केहा सो घरु केहा जितु बहि सरब समाले ॥
वाजे तेरे नाद अनेक असंखा केते तेरे वावणहारे ॥
केते तेरे राग परी सिउ कहीअहि केते तेरे गावणहारे ॥
गावनि तुधनो पवणु पाणी बैसंतरु गावै राजा धरमु दुआरे ॥
गावनि तुधनो चितु गुपतु लिखि जाणनि लिखि लिखि धरमु बीचारे ॥
गावनि तुधनो ईसरु ब्रहमा देवी सोहनि तेरे सदा सवारे ॥
गावनि तुधनो इंद्र इंद्रासणि बैठे देवतिआ दरि नाले ॥
गावनि तुधनो सिध समाधी अंदरि गावनि तुधनो साध बीचारे ॥
गावनि तुधनो जती सती संतोखी गावनि तुधनो वीर करारे ॥
गावनि तुधनो पंडित पड़नि रखीसुर जुगु जुगु वेदा नाले ॥
गावनि तुधनो मोहणीआ मनु मोहनि सुरगु मछु पइआले ॥
गावनि तुधनो रतन उपाए तेरे अठसठि तीरथ नाले ॥
गावनि तुधनो जोध महाबल सूरा गावनि तुधनो खाणी चारे ॥
गावनि तुधनो खंड मंडल ब्रहमंडा करि करि रखे तेरे धारे ॥
सेई तुधनो गावनि जो तुधु भावनि रते तेरे भगत रसाले ॥
होरि केते तुधनो गावनि से मै चिति न आवनि नानकु किआ बीचारे ॥
सोई सोई सदा सचु साहिबु साचा साची नाई ॥
है भी होसी जाइ न जासी रचना जिनि रचाई ॥
रंगी रंगी भाती करि करि जिनसी माइआ जिनि उपाई ॥
करि करि देखै कीता आपणा जिउ तिस दी वडिआई ॥
जो तिसु भावै सोई करसी फिरि हुकमु न करणा जाई ॥
सो पातिसाहु साहा पतिसाहिबु नानक रहणु रजाई ॥१॥
आसा महला १ ॥
सुणि वडा आखै सभु कोइ ॥ केवडु वडा डीठा होइ ॥
कीमति पाइ न कहिआ जाइ ॥ कहणै वाले तेरे रहे समाइ ॥१॥
वडे मेरे साहिबा गहिर ग्मभीरा गुणी गहीरा ॥
कोइ न जाणै तेरा केताकेवडु चीरा ॥१॥ रहाउ ॥
सभि सुरती मिलि सुरति कमाई ॥ सभ कीमति मिलि कीमति पाई ॥
गिआनी धिआनी गुर गुरहाई ॥ कहणु न जाई तेरी तिलु वडिआई ॥२॥
सभि सत सभि तप सभि चंगिआईआ ॥ सिधा पुरखा कीआ वडिआईआ ॥
तुधु विणु सिधी किनै न पाईआ ॥ करमि मिलै नाही ठाकि रहाईआ ॥३॥
आखण वाला किआ वेचारा ॥ सिफती भरे तेरे भंडारा ॥
जिसु तू देहि तिसै किआ चारा ॥ नानक सचु सवारणहारा ॥
आसा महला १ ॥
आखा जीवा विसरै मरि जाउ ॥ आखणि अउखा साचा नाउ ॥
साचे नाम की लागै भूख ॥ उतु भूखै खाइ चलीअहि दूख ॥१॥
सो किउ विसरै मेरी माइ ॥ साचा साहिबु साचै नाइ ॥१॥ रहाउ ॥
साचे नाम की तिलु वडिआई ॥ आखि थके कीमति नही पाई ॥
जे सभि मिलि कै आखण पाहि ॥ वडा न होवै घाटि न जाइ ॥२॥
ना ओहु मरै न होवै सोगु ॥ देदा रहै न चूकै भोगु ॥
गुणु एहो होरु नाही कोइ ॥ ना को होआ ना को होइ ॥३॥
जेवडु आपि तेवड तेरी दाति ॥ जिनि दिनु करि कै कीती राति ॥
खसमु विसारहि ते कमजाति ॥ नानक नावै बाझु सनाति ॥
रागु गूजरी महला ४ ॥
हरि के जन सतिगुर सत पुरखा बिनउ करउ गुर पासि ॥
हम कीरे किरम सतिगुर सरणाई करि दइआ नामु परगासि ॥१॥
मेरे मीत गुरदेव मो कउ राम नामु परगासि ॥
गुरमति नामु मेरा प्रान सखाई हरि कीरति हमरी रहरासि ॥१॥ रहाउ ॥
हरि जन के वड भाग वडेरे जिन हरि हरि सरधा हरि पिआस ॥
हरि हरि नामु मिलै त्रिपतासहि मिलि संगति गुण परगासि ॥२॥
जिन हरि हरि हरि रसु नामु न पाइआ ते भागहीण जम पासि ॥
जो सतिगुर सरणि संगति नही आए ध्रिगु जीवे ध्रिगु जीवासि ॥३॥
जिन हरि जन सतिगुर संगति पाई तिन धुरि मसतकि लिखिआ लिखासि ॥
धनु धंनु सतसंगति जितु हरि रसु पाइआ मिलि जन नानक नामु परगासि ॥
रागु गूजरी महला ५ ॥
काहे रे मन चितवहि उदमु जा आहरि हरि जीउ परिआ ॥
सैल पथर महि जंत उपाए ता का रिजकु आगै करि धरिआ ॥१॥
मेरे माधउ जी सतसंगति मिले सु तरिआ ॥
गुर परसादि परम पदु पाइआ सूके कासट हरिआ ॥१॥ रहाउ ॥
जननि पिता लोक सुत बनिता कोइ न किस की धरिआ ॥
सिरि सिरि रिजकु संबाहे ठाकुरु काहे मन भउ करिआ ॥२॥
ऊडे ऊडि आवै सै कोसा तिसु पाछै बचरे छरिआ ॥
तिन कवणु खलावै कवणु चुगावै मन महि सिमरनु करिआ ॥३॥
सभि निधान दस असट सिधान ठाकुर कर तल धरिआ ॥
जन नानक बलि बलि सद बलि जाईऐ तेरा अंतु न पारावरिआ ॥
सोदरु रागु आसा महला १ ॥
ੴ
सतिगुर प्रसादि ॥
सो पुरखु निरंजनु हरि पुरखु निरंजनु हरि अगमा अगम अपारा ॥
सभि धिआवहि सभि धिआवहि तुधु जी हरि सचे सिरजणहारा ॥
सभि जीअ तुमारे जी तूं जीआ का दातारा ॥
हरि धिआवहु संतहु जी सभि दूख विसारणहारा ॥
हरि आपे ठाकुरु हरि आपे सेवकु जी किआ नानक जंत विचारा ॥१॥
तूं घट घट अंतरि सरब निरंतरि जी हरि एको पुरखु समाणा ॥
इकि दाते इकि भेखारी जी सभि तेरे चोज विडाणा ॥
तूं आपे दाता आपे भुगता जी हउ तुधु बिनु अवरु न जाणा ॥
तूं पारब्रहमु बेअंतु बेअंतु जी तेरे किआ गुण आखि वखाणा ॥
जो सेवहि जो सेवहि तुधु जी जनु नानकु तिन कुरबाणा ॥२॥
हरि धिआवहि हरि धिआवहि तुधु जी से जन जुग महि सुखवासी ॥
से मुकतु से मुकतु भए जिन हरि धिआइआ जी तिन तूटी जम की फासी ॥
जिन निरभउ जिन हरि निरभउ धिआइआ जी तिन का भउ सभु गवासी ॥
जिन सेविआ जिन सेविआ मेरा हरि जी ते हरि हरि रूपि समासी ॥
से धंनु से धंनु जिन हरि धिआइआ जी जनु नानकु तिन बलि जासी ॥३॥
तेरी भगति तेरी भगति भंडार जी भरे बिअंत बेअंता ॥
तेरे भगत तेरे भगत सलाहनि तुधु जी हरि अनिक अनेक अनंता ॥
तेरी अनिकतेरी अनिक करहि हरि पूजा जी तपु तापहि जपहि बेअंता ॥
तेरे अनेक तेरे अनेक पड़हि बहु सिम्रिति सासत जीकरि किरिआ खटु करम करंता ॥
से भगतसे भगत भले जन नानक जी जो भावहि मेरे हरि भगवंता ॥४॥
तूं आदि पुरखु अपर्मपरु करता जी तुधु जेवडु अवरु न कोई ॥
तूं जुगु जुगु एको सदा सदा तूं एको जी तूं निहचलु करता सोई ॥
तुधु आपे भावै सोई वरतै जी तूं आपे करहि सु होई ॥
तुधु आपे स्रिसटि सभ उपाई जी तुधु आपे सिरजि सभ गोई ॥
जनु नानकु गुण गावै करते के जी जो सभसै का जाणोई ॥५॥
आसा महला ४॥
तूं करता सचिआरु मैडा सांई ॥
जो तउ भावै सोई थीसी जो तूं देहिसोई हउ पाई ॥१॥ रहाउ ॥
सभ तेरी तूं सभनी धिआइआ ॥ जिसनो क्रिपा करहि तिनि नाम रतनु पाइआ ॥
गुरमुखि लाधा मनमुखि गवाइआ ॥ तुधु आपि विछोड़िआ आपि मिलाइआ ॥१॥
तूं दरीआउ सभ तुझ ही माहि ॥ तुझ बिनु दूजा कोई नाहि ॥
जीअ जंत सभि तेरा खेलु ॥ विजोगि मिलि विछुड़िआ संजोगी मेलु ॥२॥
जिसनो तूं जाणाइहि सोई जनु जाणै ॥ हरि गुण सद ही आखि वखाणै ॥
जिनि हरि सेविआ तिनि सुखु पाइआ ॥ सहजे ही हरि नामि समाइआ ॥३॥
तूं आपे करता तेरा कीआ सभु होइ ॥ तुधु बिनु दूजा अवरु न कोइ ॥
तू करि करि वेखहि जाणहि सोइ ॥ जन नानक गुरमुखि परगटु होइ ॥
आसा महला १॥
तितु सरवरड़ै भईले निवासा पाणी पावकु तिनहि कीआ ॥
पंक जु मोह पगु नही चालै हम देखा तह डूबीअले ॥१॥
मन एकु न चेतसि मूड़ मना ॥ हरि बिसरत तेरे गुण गलिआ ॥१॥ रहाउ ॥
ना हउ जती सती नही पड़िआ मूरख मुगधा जनमु भइआ ॥
प्रणवति नानक तिन की सरणा जिन तूं नाही वीसरिआ ॥
आसा महला ५ ॥
भई परापति मानुख देहुरीआ ॥ गोबिंद मिलण की इह तेरी बरीआ ॥
अवरि काज तेरै कितै न काम ॥ मिलु साधसंगति भजु केवल नाम ॥
सरंजामि लागु भवजल तरन कै ॥ जनमु ब्रिथा जात रंगि माइआ कै ॥ रहाउ ॥
जपु तपु संजमु धरमु न कमाइआ ॥ सेवा साध न जानिआ हरि राइआ ॥
कहु नानक हम नीच करंमा ॥ सरणि परे की राखहु सरमा ॥
जपु तपु संजमु धरमु न कमाइआ ॥ सेवा साध न जानिआ हरि राइआ ॥
कहु नानक हम नीच करंमा ॥ सरणि परे की राखहु सरमा ॥
स्री वाहगुरू जी की फतह ॥
पातिसाही १० ॥ चौपई ॥
पुनि राछस का काटा सीसा ॥ स्री असिकेतु जगत के ईसा ॥
पुहपन ब्रिसटि गगन तें भई ॥ सभ हिन आनि बधाई दई ॥१॥
धंन धंन लोगन के राजा ॥ दुसटन दाह गरीब निवाजा ॥
अखल भवन के सिरजनहारे ॥ दास जानि मुहि लेहु उबारे ॥२॥
कबयो बाच बेनती ॥ चौपई ॥
हमरी करो हाथ दै रछा ॥ पूरन होइ चित की इछा ॥
तव चरनन मन रहै हमारा ॥ अपना जान करो प्रतिपारा ॥१॥
हमरे दुसट सभै तुम घावहु ॥ आपु हाथ दै मोहि बचावहु ॥
सुखी बसै मोरो परिवारा ॥ सेवक सिख सभै करतारा ॥२॥
मो रछा निजु कर दै करियै ॥ सभ बैरिन कौ आज संघरियै ॥
पूरन होइ हमारी आसा ॥ तोर भजन की रहै पिआसा ॥३॥
तुमहि छाडि कोई अवर न धियाऊं ॥ जो बर चाहों सु तुम ते पाऊं ॥
सेवक सिख हमारे तारीअहि ॥ चुनि चुनि सत्र हमारे मारीअहि ॥४॥
आप हाथ दै मुझै उबरियै ॥ मरन काल का त्रास निवरियै ॥
हूजो सदा हमारे पछा ॥ स्री असिधुज जू करियहु रछा ॥५॥
राखि लेहु मुहि राखनहारे ॥ साहिब संत सहाइ पियारे ॥
दीन बंधु दुसटन के हंता ॥ तुम हो पुरी चतुर दस कंता ॥६॥
काल पाइ ब्रहमा बपु धरा ॥ काल पाइ सिवजू अवतरा ॥
काल पाइ करि बिसन प्रकासा ॥ सकल काल का कीआ तमासा ॥७॥
जवन काल जोगी सिव कीओ ॥ बेद राज ब्रहमा जू थीओ ॥
जवन काल सभ लोक सवारा ॥ नमसकार है ताहि हमारा ॥८॥
जवन काल सभ जगत बनायो ॥ देव दैत जछन उपजायो ॥
आदि अंति एकै अवतारा ॥ सोई गुरू समझियहु हमारा ॥९॥
नमसकार तिस ही को हमारी ॥ सकल प्रजा जिन आप सवारी ॥
सिवकन को सिवगुन सुख दीयो ॥ सत्रुन को पल मो बध कीयो ॥१०॥
घट घट के अंतर की जानत ॥ भले बुरे की पीर पछानत ॥
चीटी ते कुंचर असथूला ॥ सभ पर क्रिपा द्रिसटि करि फूला ॥११॥
संतन दुख पाए ते दुखी ॥ सुख पाए साधन के सुखी ॥
एक एक की पीर पछानैं ॥ घट घट के पट पट की जानैं ॥१२॥
जब उदकरख करा करतारा ॥ प्रजा धरत तब देह अपारा ॥
जब आकरख करत हो कबहूं ॥ तुम मै मिलत देह धर सभहूं ॥१३॥
जेते बदन स्रिसटि सभ धारै ॥ आपु आपनी बूझ उचारै ॥
तुम सभही ते रहत निरालम ॥ जानत बेद भेद अर आलम ॥१४॥
निरंकार न्रिबिकार न्रिलंभ ॥ आदि अनील अनादि असंभ ॥
ता का मूड़्ह उचारत भेदा ॥ जा को भेव न पावत बेदा ॥१५॥
ता कौ करि पाहन अनुमानत ॥ महां मूड़्ह कछु भेद न जानत ॥
महादेव कौ कहत सदा सिव ॥ निरंकार का चीनत नहि भिव ॥१६॥
आपु आपुनी बुधि है जेती ॥ बरनत भिंन भिंन तुहि तेती ॥
तुमरा लखा न जाइ पसारा ॥ किह बिधि सजा प्रथम संसारा ॥१७॥
एकै रूप अनूप सरूपा ॥ रंक भयो राव कही भूपा ॥
अंडज जेरज सेतज कीनी ॥ उतभुज खानि बहुर रचि दीनी ॥१८॥
कहूं फूलि राजा ह्वै बैठा ॥ कहूं सिमटि भयो संकर इकैठा ॥
सिगरी स्रिसटि दिखाइ अचंभव ॥ आदि जुगादि सरूप सुयंभव ॥१९॥
अब रछा मेरी तुम करो ॥ सिख उबारि असिख संघरो ॥
दुसट जिते उठवत उतपाता ॥ सकल मलेछ करो रण घाता ॥२०॥
जे असिधुज तव सरनी परे ॥ तिन के दुसट दुखित ह्वै मरे ॥
पुरख जवन पग परे तिहारे ॥ तिन के तुम संकट सभ टारे ॥२१॥
जो कलि कौ इक बार धिऐ है ॥ ता के काल निकटि नहि ऐहै ॥
रछा होइ ताहि सभ काला ॥ दुसट अरिसट टरें ततकाला ॥२२॥
क्रिपा द्रिसटि तन जाहि निहरिहो ॥ ता के ताप तनक महि हरिहो ॥
रिधि सिधि घर मो सभ होई ॥ दुसट छाह छ्वै सकै न कोई ॥२३॥
एक बार जिन तुमै संभारा ॥ काल फास ते ताहि उबारा ॥
जिन नर नाम तिहारो कहा ॥ दारिद दुसट दोख ते रहा ॥२४॥
खड़ग केत मैं सरणि तिहारी ॥ आप हाथ दै लेहु उबारी ॥
सरब ठौर मो होहु सहाई ॥ दुसट दोख ते लेहु बचाई ॥२५॥
क्रिपा करी हम पर जगमाता ॥ ग्रंथ करा पूरन सुभ राता ॥
किलबिख सकल देह को हरता ॥ दुशट दोखियन को छै करता ॥२६॥
स्री असिधुज जब भए दयाला ॥ पूरन करा ग्रंथ ततकाला ॥
मन बांछत फल पावै सोई ॥ दूख न तिसै बिआपत कोई ॥२७॥
अड़ि्ल ॥
सुनै गुंग जो याहि सु रसना पावई ॥ सुनै मूड़्ह चित लाइ चतुरता आवई ॥
दूख दरद भौ निकट न तिन नर के रहै ॥ हो जो याकी एक बार चौपई को कहै ॥
चौपई ॥
स्मबत स्त्रहसहस भणि्जै ॥ अरध सहस फुनि तीनि कहि्जै ॥
भाद्रव सुदी अशटमी रवि वारा ॥ तीर सतु्द्रव ग्रंथ सुधारा ॥
इति स्री चरित्रो पख्याने ॥ त्रिया चरित्रे मंत्री भूप सम्बादे ॥
चार सौ पांच चरित्र समापत मसतु सुभ मसतु ॥१॥ अफजूं ॥
दोहरा ॥
दास जान करि दास परि कीजै क्रिपा अपार ॥
आप हाथ दै राखु मुहि मन क्रम बचन बिचार ॥१॥
चौपई ॥
मै न गनेसहि प्रिथम मनाऊं ॥ किसन बिसन कबहूं नहि धिआऊं ॥
कान सुने पहिचान न तिन सो ॥ लिव लागी मोरी पग इन सो ॥२॥
महा काल रखवारि हमारो ॥ महां लोह मै किंकर थारो ॥
अपना जान करो रखवार ॥ बांह गहे की लाज बिचार ॥३॥
अपना जान मुझै प्रतिपरीऐ ॥ चुन चुन सत्र हमारे मरीऐ ॥
देग तेग जग मै दोऊ चलै ॥ राख आप मुहिअउर न दलै ॥४॥
तुम मम करहु सदा प्रतिपारा ॥ तुम साहब मै दास तिहारा ॥
जान आपना मुझै निवाज ॥ आप करो हमरे सभ काज ॥५॥
तुम हो सभ राजन के राजा ॥ आपे आपु गरीब निवाजा ॥
दास जान कर क्रिपा करहु मुहि ॥ हार परा मै आनि दुआर तुहि ॥६॥
अपना जान करो प्रतिपारा ॥ तुम साहिबु मैं किंकरु थारा ॥
दास जान दै हाथ उबारो ॥ हमरे सभ बैरीअन संघारो ॥७॥
प्रिथम धरों भग वत को ध्याना ॥ बहुर करों कबिता बिधि नाना ॥
क्रिसन जथा मति चरित्र उचारो ॥ चूक होइ कबि लेहु सुधारो ॥८॥
कबिउ बाच ॥ दोहरा ॥
जो निज प्रभ मो सो कहा सो कह हौं जग माहि ॥
जो तिह प्रभ को धिआइ हैं अंत सुरग को जाहिं ॥१॥
दोहरा ॥
हरि हरिजनि दुई एक है बिब बिचार कछु नाहि ॥
जल ते उपज तरंग जिउ जल ही बिखै समाहि ॥२॥
दोहरा ॥
जब आइसु प्रभ को भयो जनमु धरा जग आइ ॥
अब मै कथा संछेप ते सभहूं कहत सुनाइ ॥१॥
कबि बाच ॥दोहरा ॥
ठाढ भयो मै जोरि करि बचन कहा सिर निआइ ॥
पंथ चलै तब जगत मै जब तुम करहु सहाइ ॥१॥
दोहरा ॥
जे जे तुमरे ध्यान को नित उठि धिऐ हैं संत ॥
अंत लहैंगे मुकत फलु पावहिगे भगवंत ॥१॥
दोहरा ॥
काल पुरख की देहि मो कोटिक बिसन महेस ॥
कोटि इन्द्र ब्रहमा किते रवि ससि क्रोर जलेस ॥१॥
दोहरा ॥
राम कथा जुग जुग अटल सभ कोई भाखत नेत ॥
सुरग बास रघुबर करा सगरी पुरी समेत ॥१॥
चौपई ॥
जो इह कथा सुनै अरु गावै ॥ दूख पाप तिह निकट न आवै ॥
बिसन भगत की ए फल होई ॥ आधि बयाधि छ्वै सकै न कोई ॥१॥
संमत स्त्रहसहस पचावन ॥ हाड़ वदी प्रिथम सुख दावन ॥
त्वप्रसादि करि ग्रंथ सुधारा ॥ भूल परीलहु लेहु सुधारा ॥२॥
दोहरा ॥
नेत्र तुंग के चरन तर सतु्द्रव तीर तरंग ॥
स्री भगवत पूरन कीयो रघुबर कथा प्रसंग ॥३॥
दोहरा ॥
साध असाध जानो नही बाद सुबाद बिबादि ॥
ग्रंथ सकल पूरण कीयो भगवत क्रिपा प्रसादि ॥४॥
स्वैया ॥
पांइ गहे जब ते तुमरे तब ते कोऊ आंख तरे नहीं आन्यो ॥
राम रहीमपुरान कुरान अनेक कहैं मत एक न मानयो ॥
सिम्रित सासत्रबेद सभै बहु भेद कहैं हम एक न जान्यो ॥
स्री असिपान क्रिपा तुमरी करि मै न कहयोसभ तोहि बखान्यो ॥
दोहरा ॥
सगल दुआर कउ छाडि कै गहिओ तुहारो दुआर ॥ बांहि गहे की लाज अस गोबिंद दास तुहार ॥
सगल दुआर कउ छाडि कै गहिओ तुहारो दुआर ॥ बांहि गहे की लाज अस गोबिंद दास तुहार ॥
रामकली महला ३ अनंदु ॥
ੴ
सतिगुर प्रसादि ॥
अनंदु भइआ मेरी माए सतिगुरू मै पाइआ ॥
सतिगुरु त पाइआ सहज सेती मनि वजीआ वाधाईआ ॥
राग रतन परवार परीआ सबद गावण आईआ ॥
सबदो त गावहु हरी केरा मनि जिनी वसाइआ ॥
कहै नानकु अनंदु होआ सतिगुरू मै पाइआ ॥१॥
ए मन मेरिआ तू सदा रहु हरि नाले ॥
हरि नालि रहु तू मंन मेरे दूख सभि विसारणा ॥
अंगीकारु ओहु करे तेरा कारज सभि सवारणा ॥
सभना गला समरथु सुआमी सो किउ मनहु विसारे ॥
कहै नानकु मंन मेरे सदा रहु हरि नाले ॥२॥
साचे साहिबा किआ नाही घरि तेरै ॥
घरि त तेरै सभु किछु है जिसु देहि सु पावए ॥
सदा सिफति सलाह तेरी नामु मनि वसावए ॥
नामु जिन कै मनि वसिआ वाजे सबद घनेरे ॥
कहै नानकु सचे साहिब किआ नाही घरि तेरै ॥३॥
साचा नामु मेरा आधारो ॥
साचु नामु अधारु मेरा जिनि भुखा सभि गवाईआ ॥
करि सांति सुख मनि आइ वसिआ जिनि इछा सभि पुजाईआ ॥
सदा कुरबाणु कीता गुरू विटहु जिस दीआ एहि वडिआईआ ॥
कहै नानकु सुणहु संतहु सबदि धरहु पिआरो ॥
साचा नामु मेरा आधारो ॥४॥
वाजे पंच सबद तितु घरि सभागै ॥
घरि सभागै सबद वाजे कला जितु घरि धारीआ ॥
पंच दूत तुधु वसि कीते कालु कंटकु मारिआ ॥
धुरि करमि पाइआ तुधु जिन कउ सि नामि हरि कै लागे ॥
कहै नानकु तह सुखु होआ तितु घरि अनहद वाजे ॥५॥
अनदु सुणहु वडभागीहो सगल मनोरथ पूरे ॥
पारब्रहमु प्रभु पाइआ उतरे सगल विसूरे ॥
दूख रोग संताप उतरे सुणी सची बाणी ॥
संत साजन भए सरसे पूरे गुर ते जाणी ॥
सुणते पुनीत कहते पवितु सतिगुरु रहिआ भरपूरे ॥
बिनवंति नानकु गुर चरण लागे वाजे अनहद तूरे ॥
सुणते पुनीत कहते पवितु सतिगुरु रहिआ भरपूरे ॥
बिनवंति नानकु गुर चरण लागे वाजे अनहद तूरे ॥
मुंदावणी महला ५ ॥
थाल विचि तिंनि वसतू पईओ सतु संतोखु वीचारो ॥
अम्रित नामु ठाकुर का पइओ जिस का सभसु अधारो ॥
जे को खावै जे को भुंचै तिस का होइ उधारो ॥
एह वसतु तजी नह जाई नित नित रखु उरि धारो ॥
तम संसारु चरन लगि तरीऐ सभु नानक ब्रहम पसारो ॥१॥
सलोक महला ५ ॥
तेरा कीता जातो नाही मैनो जोगु कीतोई ॥
मै निरगुणिआरे को गुणु नाही आपे तरसु पइओई ॥
तरसु पइआ मिहरामति होई सतिगुरु सजणु मिलिआ ॥
नानक नामु मिलै तां जीवां तनु मनु थीवै हरिआ ॥१॥
पउड़ी ॥
तिथै तू समरथु जिथै कोइ नाहि ॥ ओथै तेरी रख अगनी उदर माहि ॥
सुणि कै जम के दूत नाइ तेरै छडि जाहि ॥ भउजलु बिखमु असगाहु गुर सबदी पारि पाहि ॥
जिन कउ लगी पिआस अम्रितु सेइ खाहि ॥ कलि महि एहो पुंनु गुण गोविंद गाहि ॥
सभसै नो किरपालु सम्हाले साहि साहि ॥ बिरथा कोइ न जाइ जि आवै तुधु आहि ॥९॥
सलोकु म: ५ ॥
अंतरि गुरु आराधणा जिहवा जपि गुर नाउ ॥ नेत्री सतिगुरु पेखणा स्रवणी सुनणा गुर नाउ ॥
सतिगुर सेती रतिआ दरगह पाईऐ ठाउ ॥ कहु नानक किरपा करे जिसनो एह वथु देइ ॥
जग महि उतम काढीअहि विरले केई केइ ॥१॥
म: ५ ॥
रखे रखणहारि आपि उबारिअनु ॥
गुर की पैरी पाइ काज सवारिअनु ॥
होआ आपि दइआलु मनहु न विसारिअनु ॥
साध जना कै संगि भवजलु तारिअनु ॥
साकत निंदक दुसट खिन माहि बिदारिअनु ॥
तिसु साहिब की टेक नानक मनै माहि ॥
जिसु सिमरत सुखु होइ सगले दूख जाहि ॥
तिसु साहिब की टेक नानक मनै माहि ॥
जिसु सिमरत सुखु होइ सगले दूख जाहि ॥२॥
वाहेगुरु जी का खालसा ॥ वाहेगुरु जी की फ़तेह ॥
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