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chaupai sahib in hindi

 

Chaupai Sahib in Hindi

चौपई साहिब








स्री वाहिगुरू जी की फतह ॥


पातिसाही १० ॥


कबयो बाच बेनती ॥ 


चौपई ॥


हमरी करो हाथ दै रछा ॥ पूरन होइ चित की इछा ॥

तव चरनन मन रहै हमारा ॥ अपना जान करो प्रतिपारा ॥१॥


हमरे दुसटसभै तुम घावहु ॥ आपु हाथ दै मोहि बचावहु ॥

सुखी बसै मोरो परिवारा ॥ सेवक सिखयसभै करतारा ॥२॥


मो रछा निजु कर दै करियै ॥ सभ बैरिन कौ आज संघरियै ॥

पूरन होइ हमारी आसा ॥ तोर भजन की रहै पयासा ॥३॥


तुमहि छाडि कोई अवर न धियाऊं ॥ जो बर चाहों सु तुमते पाऊं ॥

सेवक सिखय हमारे तारीअहि ॥ चुनि चुनि सत्रहमारे मारियहि ॥४॥


आप हाथ दै मुझै उबरियै ॥ मरन काल का त्रास निवरियै ॥

हूजो सदा हमारे पछा ॥ स्री असिधुज जू करियहु रछा ॥५॥


राखि लेहु मुहि राखनहारे ॥ साहिब संत सहाइ पियारे ॥

दीन बंधु दुसटन के हंता ॥ तुमहो पुरी चतुर दस कंता ॥६॥


काल पाइ ब्रहमा बपु धरा ॥ काल पाइ सिवजू अवतरा ॥

काल पाइ करि  बिसन प्रकासा ॥ सकल काल का कीआ तमासा ॥७॥


जवन काल जोगी सिव कीओ ॥ बेद राज ब्रहमा जू थीओ ॥

जवन काल सभ लोक सवारा ॥ नमसकार है ताहि हमारा ॥८॥


जवन काल सभ जगत बनायो ॥ देव दैत जछन उपजायो ॥

आदि अंति एकै अवतारा ॥ सोई गुरू समझियहु हमारा ॥९॥


नमसकार तिसही को हमारी ॥ सकल प्रजा जिन आप सवारी ॥

सिवकन को सवगुन सुख दीओ ॥  सत्रुन को पल मो बध कीओ ॥१०॥


घट घट के अंतर की जानत ॥ भले बुरे की पीर पछानत ॥

चीटी ते कुंचर असथूला ॥ सभ पर क्रिपा द्रिसटि करि फूला ॥११॥


संतन दुख पाए ते दुखी ॥ सुख पाए साधन के सुखी ॥

एक एक की पीर पछानै ॥ घट घट के पट पट की जानै ॥१२॥


जब उदकरख करा करतारा ॥ प्रजा धरत तब देह अपारा ॥

जब आकरख करत हो कबहूं ॥ तुम मैं मिलत देह धर सभहूं ॥१३॥


जेते बदन  स्रिसटि सभ धारै ॥ आपु आपनी बूझ उचारै ॥

तुम सभ ही ते रहत निरालम  जानत बेद भेद अर आलम ॥१४॥


निरंकार न्रिबिकार न्रिलंभ  ॥ आदि अनील अनादि असंभ  ॥

ता का मूड़्ह उचारत भेदा ॥ जा कौ भेव न पावत बेदा ॥१५॥


ता कौ करि पाहन अनुमानत ॥ महां मूड़्ह कछु भेद न जानत ॥

महादेव कौ कहत सदा सिव ॥ निरंकार का चीनत नहि भिव ॥१६॥


आपु आपुनी बुधि है जेती ॥ बरनत भिंन भिंन तुहि तेती ॥

तुमरा लखा न जाइ पसारा ॥ किह बिधि सजा प्रथम संसारा ॥१७॥


एकै रूप अनूप सरूपा ॥ रंक भयो राव कही भूपा ॥

अंडज जेरज सेतज कीनी ॥ उतभुज खानि बहुर रचि दीनी ॥१८॥


कहूं फूलि राजा ह्वै बैठा ॥ कहूं सिमटि भयो  संकर इकैठा ॥

सिगरी स्रिसटि  दिखाइ अचंभव ॥ आदि जुगादि सरूप सुय्मभव ॥१९॥


अब रछा मेरी तुम करो ॥  सिखय उबारि असिखय संघरो ॥

दुसट जिते उठवत उतपाता ॥ सकल मलेछ करो रण घाता ॥२०॥


जे असिधुज तव सरनी परे ॥ तिन के दुसट दुखित ह्वै मरे ॥

पुरख जवन पग परे तिहारे ॥ तिन के तुम संकट सभ टारे ॥२१॥


जो कलि कौ इक बार धिऐहै ॥ ता के काल निकटि नहि ऐहै ॥

रछा होइ ताहि सभ काला ॥ दुसट अरिसट टरें ततकाला ॥२२॥


क्रिपा द्रिसटि तन जाहि निहरिहो ॥ ताके ताप तनक महि हरिहो ॥

रिधि सिधि घर मो सभ होई ॥ दुसट छाह छ्वै सकै न कोई ॥२३॥


एक बार जिन तुमै संभारा ॥ काल फास ते ताहि उबारा ॥

जिन नर नाम तिहारो कहा ॥ दारिद दुसट दोख ते रहा ॥२४॥


खड़ग केत मै सरणि तिहारी ॥ आप हाथ दै लेहु उबारी ॥

सरब ठौर मो होहु सहाई ॥ दुसट दोख ते लेहु बचाई ॥२५॥


क्रिपा करी हम पर जगमाता  ग्रंथ करा पूरन सुभ राता ॥

किलबिख सकल देह को हरता दुसट दोखियन को छै करता ॥ २६॥


स्री असिधुज जब भए दयाला पूरन करा ग्रंथ ततकाला ॥

मन बांछत फल पावै सोई  दूख न तिसै बिआपत कोई ॥२७॥


अड़िल ॥


सुनै गुंग जो याहि सु रसना पावई सुनै मूड़ चित लाइ चतुरता आवई ॥

दूख दरद भौ निकट न तिन नर के रहै  हो जो याकी एक बारचौपई को कहै ॥


चौपई ॥


स्मबत स्त्रह सहस भणि्जै  अरध सहस फुनि तीनि कहिजै ॥

भाद्रव सुदी अशटमी रवि वारा  तीर सतुद्रव ग्रंथ सुधारा ॥


स्वैया ॥


पांइ गहे जब ते तुमरे तब ते कोऊ आंख तरे नही आनयो ॥

राम रहीमपुरान कुरान अनेक कहैं मत एक न मानयो  ॥

सिम्रित सासत्र बेद सभै बहु भेद कहैं हम एक न जानयो ॥

स्री असिपान क्रिपा तुमरी करि मै न कहयो सभ तोहि बखानयो ॥


दोहरा ॥


सगल दुआर कउ छाडि कै गहिओ तुहारो दुआर बांहि गहे की लाज अस गोबिंद दास तुहार ॥

सगल दुआर कउ छाडि कै गहिओ तुहारो दुआर बांहि गहे की लाज अस गोबिंद दास तुहार ॥


वाहेगुरु जी का खालसा ॥  वाहेगुरु जी की फतेह ॥


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चौपई साहिब फास्ट

Chaupai Sahib fast version

 
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